Posts

Showing posts from 2017

तुम्हें, दिवाली मनाने की इच्छा है?

Image
तुम्हें, दिवाली मनाने की इच्छा है ? अरे भई चलो मना लेना, मगर मेरे कुछ सवाल है, उनका पहले जवाब दे देना। Image Courtesy: Happy Holi SMS क्या तुम लोगों की ज़िंदगी से प्रेम नहीं करते हो? क्या खुली हवा में साँस लेना पसंद तुम नहीं करते हो? क्या अपनी आँखों से तुम इतनी नफ़रत करते हो? इसीलिए सोचा पूछ लूँ की, आख़िर तुम क्यों दिवाली, पटाखे फोड़कर मानना चाहते हो? क्यों दिवाली में बम और पटाखे तुम्हें फोड़ने है? आख़िर क्यों तुम्हें पटाखों के फटने की आवाज़ से ख़ुशी मिलती है? क्या तुम्हें पटाखों के फटने के शोर से प्यार है? कौन सी वो बात है जो तुम्हें अपना और अपने घर का इतना पैसा बम फोड़ने के लिए ख़र्च करने पर मजबूर कर देती है? कोई तो वजह होगी तुम्हारी जो तुम आज दिवाली में पटाखे फोड़ना चाह रहे हो? शायद वो वजह तुम जानते होंगे। इसीलिए सोचा पूछ लूँ की, आख़िर तुम क्यों दिवाली, पटाखे फोड़कर मानना चाहते हो? क्या तुम्हें पंछियों से प्यार नहीं है? क्या तुम्हें सुबह उठकर ताज़ी हवा होने का अब अहसास नहीं है? क्या तुम्हें उन छोटे जानवरों से लगाव नहीं है ? या तुम्हें अपने और आने वाले कल से भी कोई

सामाजिक बदलाव की कहानी “नाला काजी पाड़ा से टर्की तक” - सुनील विमल

Image
आज मैं आपके साथ एक बदलाव की कहानी साझा करना चाहता हूँ। यह कहानी Jay Prakash की है। एक ऐसा बदलाव का सफ़र जो “नाला काजी पाड़ा, आगरा से टर्की तक” बयान होता है। इस सफ़र की शुरुआत उत्तरप्रदेश के शहर आगरा के छोटे से इलाक़े ‘नाला काजी पाड़ा’ से शुरू होती है । 8/10 फ़ीट के घर में रहकर वह उन ऊँचाइयों को छूता है जिसकी कल्पना शायद किसी ने कभी की ही नहीं थी। जय के बदलाव का सफ़र इंटरस्कूल से शुरू होता जब वह पढ़ाई को समाज में सही तौर पर इस्तेमाल करने के लिए पढ़ने कि ठानता है नाकी अच्छे अंकों के लिये। शुरू से ही उसका नाम होनहार विद्यार्थियों की तालिका में अवल दर्जे पर दर्ज होता रहा है। उसकी सोच रही है कि पढ़ाई ज्यादा अंक लाने के लिये नहीं बल्कि, जो भी पढ़ा है उससे जीवन कैसे कामयाब बनाया जाए।उसका सपना था की उसे स्कूल के बोर्ड पर नाम लिखवाना है जहाँ से उसके नाम चाहकर भी कोई मिटा न सकें। जिसे उसने हासिल भी किया, जिसकी मुझें बहुत खुशी है। घर के बाहर नाले की एक तस्वीर यह बात सन 2011 की है जब उसका नाम दो इंजीनियरिंग कॉलेज की चयनित हुआ था। वह दिल्ली इंजीनिरिंग कॉलेज (DCE) के जगह गौतम बुद्धा विश्वविध

अगली रेल दुर्घटना के लिए तैयार रहें!

Image
अगली रेल दुर्घटना के लिए तैयार रहें...निजीकरण के स्वागत मे इंसानों की बलि दी जा रही है भारतीय रेल मे। भारतीय रेल मे अपनी संचार व्यवस्था हुअा करती थी। MTNL और BSNL से अलग। दो तरह के फोन थे एक हैण्डल घुमा कर डायल होता था दूसरा साधारण फोन की तरह हुआ करता था। जब 7 digit के MTNL नंबर हुआ करते थे तब रेलवे का साधारण फोन 4 digit के नंबर हुआ करते थे। ये फोन रेलवे की अस्पताल की एंबुलेंस सेवा और डाॅक्टरों के कमरो मे लगे दिखते थे। रेलवे अफसर के घरों मे भी हुआ करता था ये फोन। इस फोन को अटेण्ड करने के लिए बाकायदा telephone attendent and Dak khalasi हुआ करता था। दूसरा हैण्डल घुमाकर डायल करने वाला फोन रेलों को दौड़ाने के लिये काम मे लाया जाता था। ये रेलवे की हाॅटलाइन था। रेलवे का Signal and Telecommunication Department इसी संचार विभाग मे रेलों को चलाने के लिए टोकन व्यवस्था भी थी। आपने देखा होगा इंजन ड्राइवर दौड़ती गाड़ी से एक बड़ा सा छल्ला फेंकता था। एक दूसरा छल्ला थोड़ा आगे खम्बे पर लटका होता था जिसे ड्राइवर झपट लेता था। अगर वो इसे न झपट पाता तो गाड़ी रोक देता था। इसी छल्ले मे लोहे की एक बड़ी गोल

बहुजन का मीडिया या मीडिया के लिए बहुजन?

Image
Photo Courtesy: Satyendra Murli's Facebook profile अभी फ़िलहाल सत्येन्द्र मुरली (अम्बेडकरवादी पत्रकार के नाम से मशहूर) को DD न्यूज़ ने नोटबंदी पर की गयी प्रेस कॉन्फ़्रेन्स (8 नवम्बर 2016) को बर्खास्त कर दिया गया है।  कमाल की बात यह है की, जिस व्यक्ति ने देश हित में अपनी नौकरी दाव पर लगा कर भारत के प्रधान मंत्री द्वारा की गयी घोषणा(अ-सामवैधानिक थी, जिसके सबूत वह प्रेस कॉन्फ़्रेन्स दे चुके है) के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई, उसे आज बिना किसी कारण के नौकरी से निकाल दिया गया है, पिछले तक़रीबन ) 9 महीने से बिना तनखाह के जीने को मजबूर कर दिया गया और कोई भी बहुजन लीडर इस पर कुछ बोल नहीं रहा बजाए जय भीम, जय भीम के!   जो व्यक्ति पिछले कई वर्षों से बहुजन समाज की आवाज़ मुख्य धारा में लाने के लिए सरकार से कई दफे दो हाथ कर चुका है (बाबा साहेब अम्बेडकर के कार्टून के जवाब में गांधी का कार्टून, DD न्यूज़ में नौकरी में आरक्षण ना लागू करने के लिए कोर्ट में केस करना), वहीं उसके लिए आज जितनी भी बहुजन मीडिया पोर्टल (कहने के लिए सिर्फ़) है वह इस पर कुछ भी नहीं लिख रहे है!  यह सच में एक चौकने वाली बात है

यह समाज किसका?

Image
समाज एक ऐसा शब्द जो आपको हर वक़्त अपने होने का अहसास कराता है, आपकी परेशानी की जड़ अथवा निवारण भी बनता है। यह शब्द रिकार्ड के हिसाब से लैटिन के शब्द socius से शुरुआत होता हुआ फ़्रेंच शब्द societe से बना है जिसका मतलब 'एक समूह जहाँ सामूहिक दोस्तीय व्यवहार हो या किया जाए'। शाब्दिक अर्थ से वर्तमान में हो रहे काम को करने और समझने के तरीक़ों में बहुत अंतर देखने को मिलेगा। समाज का मतलब अगर हम भारतीय संस्कृति के हिसाब से देखें तो यह शब्द कई ब्रांच में बटता दिखाई देगा। भारत में यह शब्द सिर्फ़ शाब्दिक अर्थ तक सीमित नहीं रहा है। यहाँ समाज के नाम पर आपको कई अलग -२ तरह के समूह देखने को मिलेंगे जो अपने स्तर पर समाज की परिभाषा को परिभाषित करते है। उदाहरण के तौर पर- यह छोटा अथवा बड़ा समाज, ग़रीब-अमीर, ऊँचा- नीचा, और इस जात- उस जात का आदि। मगर भारत में जात के हिसाब से अधिकतर लोग समाज को परिभाषित करते है। समाज के अर्थ के हिसाब से मतलब तो एक ही है मगर एक लेबल का जुड़ाव भी यहाँ पर देखने को मिलेगा जो आपको समाज की शाब्दिक परिभाषा से अलग सोचने पर मजबूर करेगा। जब भी हम समाज कि बात करते है तो

समय की क़दर कहीं गुम है

Image
यह बात बहुत दिनों से ज़हन में चल रही है। आख़िर क्या वजह है की सब कुछ जान कर भी मैं आज अपने आप से अनजानों सा बर्ताव कर रहा हूँ?  उन बातों से भाग रहा हूँ जिनपर मैं कभी पीछे नहीं हटा, जिन्हें मैंने अपने ज़हन में हर वक़्त रखा। आख़िर कौन है जिसने मुझे मेरे ही बनाए हुए रास्ते पर ना चलने के लिए कई तरह के विश्वास जैसे रास्ते दिखा कर मुझे वहीं पर एक ही जगह पर खड़े होने पर मजबूर कर दिया? Image Courtesy: Clipartix.com मैं एक ऐसी स्थिति में जीने लगा हूँ की समझ में नहीं आता की किसे दोष दूँ और किसे ना दूँ। अपने ही काम को ना करपाने की वजह से कितने लोगों को दोषी क़रार करूँ? मैं ऐसा तो नहीं था पहले और ना कभी होना चाहता हूँ। शायद मन की एकाग्र (एक ही जगह पर) ना होने की वजह से मैं ऐसा बर्ताव तो नहीं करने लगा हूँ? कई बार लिखते लिखते अपने आप को मैं सही ढंग से देख पता हूँ समझ पता हूँ मगर फिर भी ऐसा क्या है जो मैं कुछ चाह कर भी नहीं कर पा रहा हूँ? अपने आस पास जब भी लोगों को पढ़ाई, आगे बढ़ने की बातें करते एवं सुनते देखता हूँ तो थोड़ा निराश हो जाता हूँ। मुझे भी कुछ कर दिखाने की ललक है, जिज्ञासा है मगर वो

ख़ुद भी हों संघर्ष में शामिल

Image
11 मार्च 2017 से यूपी के चुनावी नतीजे के बाद लोगों ने अपने अपने नज़रिये से इस चुनाव को ख़ासतौर से मायावती के चुनावी रणनीति पर तर्क वितर्क करना शुरू कर दिया है। कमाल की बात यह है, इनमे से ज़्यादातर लोग वो है जिन्होंने समाज में एक दिन भी नहीं दिया। सोशल मीडिया पर बहुत समय से यह देखा भी गया है कि कुछ लोग अपने द्वारा किए गए काम के क्रेडिट ना मिलने की वजह से आरोप प्रत्यारोप के रास्ते पर चलने लगते है और उनका दर्द एक हद तक समझा जा सकता है। मगर यह कहाँ तक स्वीकार करने योग्य की आप किसी व्यक्ति-विशेष को खुले आम ख़ुद के निजी स्वार्थ न पूरा होने की वजह से बदनाम करने लगे? इस समाज में आप शायद दूसरे पीडी हो सकते है जो पढ़ सके है, विश्वविध्यालय देख पाएँ है, ग्लोबल स्तर के उपकरणों तक पहुँच बना पाये। ऐसे बहुत से आपके समाज के लोग है जो शायद पहली पीडी है ही है जिनकी संख्या लाँखो में है, और आप अभी से है इस समाज के बने पुराने ढाँचे को आधा अधूरा समझ कर अपने ही समाज को ही कोसने लगे, यह कहाँ से सही है? आपको पहले अपने समाज को देखना होगा, उसके इतिहास को समझना होगा कि, आपके समाज में क्यों आपके लोग जुड़ने स