बहुजन का मीडिया या मीडिया के लिए बहुजन?

Photo Courtesy: Satyendra Murli's Facebook profile
अभी फ़िलहाल सत्येन्द्र मुरली (अम्बेडकरवादी पत्रकार के नाम से मशहूर) को DD न्यूज़ ने नोटबंदी पर की गयी प्रेस कॉन्फ़्रेन्स (8 नवम्बर 2016) को बर्खास्त कर दिया गया है। 

कमाल की बात यह है की, जिस व्यक्ति ने देश हित में अपनी नौकरी दाव पर लगा कर भारत के प्रधान मंत्री द्वारा की गयी घोषणा(अ-सामवैधानिक थी, जिसके सबूत वह प्रेस कॉन्फ़्रेन्स दे चुके है) के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई, उसे आज बिना किसी कारण के नौकरी से निकाल दिया गया है, पिछले तक़रीबन ) 9 महीने से बिना तनखाह के जीने को मजबूर कर दिया गया और कोई भी बहुजन लीडर इस पर कुछ बोल नहीं रहा बजाए जय भीम, जय भीम के!

 जो व्यक्ति पिछले कई वर्षों से बहुजन समाज की आवाज़ मुख्य धारा में लाने के लिए सरकार से कई दफे दो हाथ कर चुका है (बाबा साहेब अम्बेडकर के कार्टून के जवाब में गांधी का कार्टून, DD न्यूज़ में नौकरी में आरक्षण ना लागू करने के लिए कोर्ट में केस करना), वहीं उसके लिए आज जितनी भी बहुजन मीडिया पोर्टल (कहने के लिए सिर्फ़) है वह इस पर कुछ भी नहीं लिख रहे है! यह सच में एक चौकने वाली बात है। 

दिलीप C मंडल सर, (वरिष्ट पत्रकार) जिन्होंने बहुजन समाज की आवाज़ को मुखर करने के लिए कई मीडिया पोर्टलों की स्थापना करने में अपना योगदान किया, वह भी आज इस मुद्धे पर कुछ बोलते नज़र नहीं आ रहे है। दिलीप सर के हिसाब से NDTV जैसे चैनल पक्षपाती ख़बर के अलवा कुछ नहीं करते है, मगर वहीं दूसरी ओर नैशनल दस्तक, दलित दस्तक, नैशनल जनमत, जैसे बहुजन मीडिया स्पेस के नाम से जाने वाले पोर्टल भी इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी साधे हुए है। क्यों?

बहुजन मीडिया में इस मुद्दे पर बात ना करने का कारण कहीं सत्येन्द्र मुरली द्वारा शुरू की गई मुहिम 'मीडिया में जाति'- जाति में मीडिया' की वजह से तो नहीं ? 

पिछले कुछ महीनों से यह भी देखने को मिला है की जिन पाँच नामो को लेकर यह मुहिम शुरू की गयी थी उसमें, Dilip C Mandal (Senior Journalist), Sambhu Kumar (National Dastak Reporter), Dolly Kumar (National Dastak Owner), Ashok Das (Dalit Dastak Founder), और ख़ुद सत्येन्द्र मुरली की जाति को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा की गयी। और क्योंकि Dilip सर नैशनल दस्तक के सलहाकार रहे एंड Sambhu उसके रिपोर्टर तो क्या इसी वजह से आज सत्येन्द्र मुरली की बर्खास्त की ख़बर उनके लिए कोई ख़बर नहीं?

अगर यह मामला ऐसा ही होता आया है तो,  यह तो वैसा ही होगा जैसा सवर्ण मीडिया करती है, 'आप मेरी ख़ुशामत नहीं करते इसीलिए हम आपकी बात नहीं करेंगे'

इसका मतलब सवर्ण मीडिया से बहुजन के कुछ मतभेद है इसीलिए सवर्ण मीडिया बहुजन की ख़बर नहीं दिखा रही है। अगर बहुजन अपने मतभेद ख़त्म करले तो सवर्ण मीडिया बहूजनों की ख़बर भी दिखाने लगेगी!

क्या पत्रकार मतभेद पर काम करने लगे है?

राहुल विमल

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