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आप एक भीड़ है!

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हाँ आपकी पहचान एक भीड़ ही है। आप देखिए अपने आपको, अपने आसपास के माहौल को और समझिए की वो कैसे और किस तरह की हरकत कर रहा है। यह नया-पन, दिखावटी दुनिया आपको अंदर से खोकली करती चली जा रही है और आप उसमें इस क़दर घुसते चले जा रहे है जैसे मानों सफ़ेदे का पेड़ जो दिखने में बहुत मज़बूत और लम्बा होता है मगर अंदर से उतना ही कच्चा और कमज़ोर। क्या कभी आपने इस बारें में अकेले बैठ कर समझने की कोशिश की है आख़िर आप कहाँ और किस माहौल में अपनी ज़िंदगी को जिए जा रहे है। आपकी अपनी ज़िंदगी के अपने मायने क्या है? आप इस भीड़ में अपने आपको कहाँ देखते है? अगर मैं अपनी बात यहाँ पर रखूँ तो यह कहने को और देखने को मिलता है कि, बहुत अजीब नज़रिया हो चला है समाज में रह रहे युवाओं का। वह अपने पक्ष, समझ को लेकर नहीं उठते दिख रहे है और यह सब बातें इस बात का सबूत है की आज बहुत बड़े युवा वर्ग के अधिकारों का दिखपाना असम्भव सा है। युवा पीडी अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने की प्रक्रिया को एक राजनैतिक बहस भी कह देती है। "आप समाज को एक भीड़ के रूप में नहीं देखते हैं बल्कि एक व्यक्ति के रूप में देखते है। आपको यह सब बाते