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Showing posts from July 18, 2015

इजराइल: जेरूसलम की वादियों से

जब भी अपने आप को देखता हूँ, खुद को तन्हाईओं में घिरा पता हूँ। देखता हूँ उन वादियों की निगाहों से, जो चुपचाप अपनी आवाज को मद किये हुए सोये हुई है और उन्ही वादियों में मैं अपने आपको पता हूँ। खाली मकान, पर्वत पर वो एक घर, मानों जैसे यह मेरा ही तो है, मैं ही तो यहाँ रहता हूँ। पेड़ो की पत्तियों से होकर आती वो हवा, कुछ फलों को मीठा कर गुज़र रही है और कुछ मुझे। इस तन्हाई के आगोश में, मैं बहुत कुछ अपने आप सा पता हूँ, पास बैठे उस शख्स में उस दर्द को देखता हूँ, जो मेरे जैसे ही लगता है उसका चेहरा मानों बहुत कुछ अपने दिल की बातें बयान कर रहा हो। वो अंगूर के लटकते पेड़, वो अनार के पेड़ का रंग सब कुछ शांत सा एहसास बयान कर रहा है। जब भी बालकनी के झरोखे से निचे के माले पर राखी कुर्सी को देखता हूँ, तो सोचता हूँ, यह खाली पड़ी एक व्यक्ति के होने का एहसास करा रही हो। मेरी बालकनी के झरोखे से निचे और आसपास पड़े खली माकन, कई वर्षों से इंसान के अस्तित्व के न होने का एहसास करा रहे हो। यह इजराइल की वादियां मेरे देश की नहीं, मगर फिर भी न जाने क्यों यह विदेशी भी नहीं लगती। दूर सड़क पर