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टीना-आमिर का प्रेम विवाह - आपको दिक़्क़त क्या है?

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प्यार के बीच एक धर्म की दीवार भी होती है। यह शायद आपको सुनने में कुछ अटपटा लगे मगर आजकल फ़ेस्बुक पर चल रहे टीना डाबी व अथर आमिर के बीच की शादी की ख़बर को लेकर जिस तरह से सवर्ण समाज तिलमिलाया हुआ है वैसे दलित v व मुस्लिम समाज के लोगों में भी कई तरह के बातों में भटकाव देखे जा रहा है। (Photo- India Today) निजी तौर पर मेरा अभी कुछ कहना मुनासिब नहीं होगा क्योंकि, आजकल के हालत के हिसाब से, लोगों द्वारा सोशल मीडिया के ग़लत दिशा में प्रयोग की वजह से भी थोड़ा सतर्क तौर पर चलना और इसी तर्ज़ पर  फ़ेस्बुक पर पोस्ट हुए एक फ़ोटो के साथ लिखे गए वाक्य को मैं इतना महत्व नहीं दे पाउँगा। वैसे कई बड़े अख़बारों - हिंदुस्तान टाइम्ज़, हफ़्फ़िगंपोस्ट, एकनामिक टाइम्ज़, टाइम्ज़ औफ़ इंडिया, इंडिया टुडे आदियों ने इन दोनो के प्रेम विवाह के संबंध को लेकर ख़बरें प्रकाशित की है। यह सभी नामी गिरामी अख़बार दोनो के प्रेम सम्बंध के विवाह को लेकर बहुत कुछ लिख चुके है। आप ख़ुद एक बार ख़ुद गूगल पर जाकर नज़र डाल कर पढ़ सकते है। 9 november 2016 को जब टीना डाबी ने अथर आमिर के साथ एक फ़ोटो फ़ेस्बुक पर पोस्ट यह लिख कर

आपका मत प्रचार तय करता है, आप नहीं।

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पिछले साल अगस्त के दौरान यू॰पी॰ में।   बात कुछ हज़म होने लायक नहीं है। बसपा का चुनाव प्रचार ज़ोरों शोरों से है और विरोधी पार्टियाँ शांति स्थापित किए हुए है? पिछले महीने बसपा की रैलियों में जिस तरह से लोगों का सैलाब देखा गया वह काफ़ी चौकने वाला रहा। बहुत सी विरोधी पार्टियों ने उस पर बात करना इसीलिए मूनासिब नहीं समझा क्योंकि उनके पास इस पर प्रहार करने के लिए कुछ नहीं था। मैं भी इस सोच के साथ बहुत दिनों से बैठा हुआ था कि, पहली बार बसपा के अलवा ओर किसी भी पार्टी के एक दिवसीय रैली में लोग क्यों नहीं पहुँच रहे है? क्या लोगों का भरोसा बसपा छोड़ बाक़ी पार्टियों से उठ गया है? या यह कहें कि लोग अब अपना मत समझने लगे है और उसी दिशा में अपने निर्णय लेने लगें है? यह कहना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि आपका मत आप ख़ुद नहीं आपके TV, रेडीओ पर दिखाई व सुनाई जाने वाला प्रचार तय करता है।  इन सब बातों का आज यहाँ पर लिखने का तात्पर्य आज की तस्वीर जो फ़ेस्बुक पर ख़ूब घूम रही है (या यू कहूँ की घुमाई जा रही है)   लोगों का कहना है कि बसपा कि लहर की चलते भक्त (किसी भी दल, समूह के कट्टर समर्थक

आप एक भीड़ है!

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हाँ आपकी पहचान एक भीड़ ही है। आप देखिए अपने आपको, अपने आसपास के माहौल को और समझिए की वो कैसे और किस तरह की हरकत कर रहा है। यह नया-पन, दिखावटी दुनिया आपको अंदर से खोकली करती चली जा रही है और आप उसमें इस क़दर घुसते चले जा रहे है जैसे मानों सफ़ेदे का पेड़ जो दिखने में बहुत मज़बूत और लम्बा होता है मगर अंदर से उतना ही कच्चा और कमज़ोर। क्या कभी आपने इस बारें में अकेले बैठ कर समझने की कोशिश की है आख़िर आप कहाँ और किस माहौल में अपनी ज़िंदगी को जिए जा रहे है। आपकी अपनी ज़िंदगी के अपने मायने क्या है? आप इस भीड़ में अपने आपको कहाँ देखते है? अगर मैं अपनी बात यहाँ पर रखूँ तो यह कहने को और देखने को मिलता है कि, बहुत अजीब नज़रिया हो चला है समाज में रह रहे युवाओं का। वह अपने पक्ष, समझ को लेकर नहीं उठते दिख रहे है और यह सब बातें इस बात का सबूत है की आज बहुत बड़े युवा वर्ग के अधिकारों का दिखपाना असम्भव सा है। युवा पीडी अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने की प्रक्रिया को एक राजनैतिक बहस भी कह देती है। "आप समाज को एक भीड़ के रूप में नहीं देखते हैं बल्कि एक व्यक्ति के रूप में देखते है। आपको यह सब बाते

Caste इन इंडिया

जब कभी भी दलित समाज की ख़बर अख़बारों या टीवी में आती है तब तब समाज का एक बहुत बड़ा तबक़ा इन घटनाओं की ख़बरों को नज़रंदाज करते देखा गया है इस तबके को दलित आधारित घटनाए आम से भी आम सी लगती है मगर यह कड़वी सच्चाई है की यह दलित आधारित घटनाए ही एक नज़र से ज़्यादा देखी जाती है। जातीगत भेदभाव, आज भी समाज में उतना ही सक्रिय है जितना मंदिरों में ब्राह्मण पुजारी। लोग नहीं समझना चाहते की जातिगत भेदभाव सबसे बड़ी जड़ है समाज में हो रही ज़्यादातर घटनाओं की।  कुछ लोगों की यह भी मान्यता है कि जाति सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत में ही दिखाई देती और वो भी कुछ ही इलाक़ों में मगर यह सरासर अज्ञानता का प्रतीक है जो किसी के पास भी भरपूर मात्रा में मिल सकता है। जातिगत भेदभाव को समझना व समझाना दोनों ही अलग अलग बात है। भारत में बहुत बड़ा तबक़ा लोगों को जाति को लेकर समझाते हुए कायी बार देखा है मगर समझते हुए बहुत कम। जातिगत सोच- विचार यह सब समाज में आप कहीं भी जाकर एक दूसरे से किसी भी राजनेतिक मुद्दों पर बात कर के भी आसानी से देख और समझ सकते है। जाति हमारे समाज में इस क़दर अपनी जड़े जमाए हुए है की इसे ख़त्म करना

आपको फ्री क्यों चाहिये?

जो भी लोग सरकार की योजनाओ पर नाचना पसंद करते हैं उन्हें समझ लेना चाहिए कि अब वो दिन दूर नहीं जब आप अपनी करनी के लिए जाने जायेंगे, आप अपने माथे पर एक टेग के साथ लोगों के सामने उभर के सामना आएंगे। बहुत समय से यह देखने को मिला है कि लोगो ने अपना दिमाग इस्तेमाल करना छोड़ सा दिया है। अपने आपको बिलकुल नहीं समझना चाहते की आप कौन है, आपकी जरुरत क्या है? दोष भी नहीं दिया जा सकता है आपको क्योंकि समाज में जिस तरह का सन्देश मीडिया व लोगो के प्रतिनिधियों दुवारा दिया जा रहा वह सब आपको आज का आदमी बनाना के लिए पर्याप्त है। जाने अनजाने आप वो सब बातें मान रहे है जो आपको अभी और बाद में समझ में आने लगेंगी। वो अलग बात है की यह सब बातें आपके काम की हैं या होगी मगर आपको इस बात का एहसास जरुर होगा। समाज को फ्री की ललक लग चुकी है जिसके लिए वो किसी भी हद्द तक अपने दिमाग का प्रयोग बंद कर सकते है। यह आज भी देखने को मिलता है बहुत आसानी से। कमाल की बात तो यह है सरकारी विज्ञापन आपको अपना दिमाग का इतेमाल करवाने के लिए महंगा से महंगा विज्ञापनों का प्रसार करवाता है वहीँ दूसरी ओर आपकों लालच भरा विज्ञापन वो सारा