आप एक भीड़ है!

हाँ आपकी पहचान एक भीड़ ही है। आप देखिए अपने आपको, अपने आसपास के माहौल को और समझिए की वो कैसे और किस तरह की हरकत कर रहा है। यह नया-पन, दिखावटी दुनिया आपको अंदर से खोकली करती चली जा रही है और आप उसमें इस क़दर घुसते चले जा रहे है जैसे मानों सफ़ेदे का पेड़ जो दिखने में बहुत मज़बूत और लम्बा होता है मगर अंदर से उतना ही कच्चा और कमज़ोर।

क्या कभी आपने इस बारें में अकेले बैठ कर समझने की कोशिश की है आख़िर आप कहाँ और किस माहौल में अपनी ज़िंदगी को जिए जा रहे है। आपकी अपनी ज़िंदगी के अपने मायने क्या है? आप इस भीड़ में अपने आपको कहाँ देखते है? अगर मैं अपनी बात यहाँ पर रखूँ तो यह कहने को और देखने को मिलता है कि, बहुत अजीब नज़रिया हो चला है समाज में रह रहे युवाओं का। वह अपने पक्ष, समझ को लेकर नहीं उठते दिख रहे है और यह सब बातें इस बात का सबूत है की आज बहुत बड़े युवा वर्ग के अधिकारों का दिखपाना असम्भव सा है। युवा पीडी अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने की प्रक्रिया को एक राजनैतिक बहस भी कह देती है। "आप समाज को एक भीड़ के रूप में नहीं देखते हैं बल्कि एक व्यक्ति के रूप में देखते है। आपको यह सब बातें अज़ीब लग रही होंगी मगर इसमें भी आपका कोई दोष नहीं आपके लिए माहौल ही ऐसा बना दिया गया।
Photo Courtesy: Pinterest.com 

तक़रीबन कुछ महीनो पहले, अगर आपको याद हो तो दिल्ली के ज़्यादातर मेट्रो स्टेशनों पर एक पोस्टर हुआ करता था जिसमें एक  व्यक्ति सोने के रंग में  एक भीड़ के बीच में खड़ा हुआ दिखाई दिया करता था और बाक़ी सब काले रंग में दिखाए जाते थे उस इस्तिहार का सीधा साधा अर्थ आपकी पहचान से ही था जो आज बहुत मुश्किल से देखने को दिखाई पड़ता है यह सब बातें यहाँ  कहने से तात्पर्य आपकी पहचान से ही है आपको आपसे रूबरू कराने से ही है 

कुछ उदाहरण- 
१ फ़्रीडम मोबाइल 251
२ गतिमान एक्सप्रेस 
प्रधानमंत्री द्वारा मेक इन इंडिया के बैनर तले  महीने पहले आपको 251 रुपय फ़्रीडम नामक मोबाइल मिलने की मुहिम छेड़ी गयी थी, जिसे इस तरह से दर्शाया गया की आपको इस मोबाइल की बहुत ज़रूरत है और आप इसे बड़ी आसानी से ख़रीद सकती है। इस बात का बहुत से लोगों ने उसे तरह से ही समझा जैसे मीडिया द्वारा इस बात को बतलाया गया। 251 में क्या आता है? यह सोच कर लोग भी एक ही लाइन में चलने लगते है और इसी को भीड़ कहते है। जिसमें आपका अपना कोई पक्ष रहा ही नहीं, क्योंकि आपको सस्ता चाहिए चाहे ज़रूरत हो या ना हो!  यह फ़्री-सस्ता की जो ललक आज के समाज में लग चुकी है वो एक भटके समाज को जन्म दे रहे है। जिसमें आप में से ज़्यादातर लोगों ने भड-चड़कर सहयोग किया

ज़रा आलोचनात्मक नज़रिए से समझने की कोशिश करिए की भला 251 रुपए की लागत से कोई मोबाइल कैसे बन सकता है?  और मिलना एक अपने आप में ही सोचने वाली बात है भला कैसे कोई भी मोबाइल कम्पनी इतने काम दाम में आपको मोबाइल दे सकती है? मुझे नहीं समझ आया शायद आप लोगों आ गया होगा उस समय जब आपने यह मोबाइल लेने के लिए बुक किया था। परिणाम - मोबाइल बनाने वाली कम्पनी ने सबके पैसे वापस करने का ऐलान किया और कहा हम यह इतने कम समय में नहीं कर पाएँगे


गतिमान एक्सप्रेसमिनी बुलिट ट्रेन के नाम से मशहूर जिसका दिल्ली से अगर तक का किराया 690 रुपय और शताब्दी एक्सप्रेस 540 रुपए किराया अथवा गतिमान की तुलना में समय में सिर्फ़ 17-18 मिनट का ही अंतर है। गतिमान आपको 100 मिनट में अगर पहचा देगी और शताब्दी 118 मिनट में।  और आप है की देखने चाहते है, उसमें बैठना चाहते है भला आपको 18 मिनट में क्या मिल जाएगा?


राहुल विमल 


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