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मैं परेशान हूँ

हां मैं परेशान हूँ   मैं परेशान हूँ इस व्यस्था को देख कर, इसमें जी रहे लोगों के आंसुओं को देख कर। मैं परेशान हूँ अपने भाइयों को घर से बेघर होते देख कर। मैं परेशान हूँ उस वक़्त से जो आज भी मुझे मुझसे मिलने नहीं देता। मैं परेशान हूँ अपने सामने लोगो को भूक से तड़पता देख कर। मैं परेशान हूँ दिल्ली की गर्मी में लोगो को भीख मांगते देख कर। मैं परेशान हूँ मुझसे ज्यादा काबिल लोगों को मुझे साहब कहते देख कर।  मैं परेशान हूँ उन लोगों को देख कर जो बिना कुछ समझे फैसला करने को तैयार रहते है। मैं परेशान हूँ उन पलों को याद कर के जो मैंने अपनी ख़ुशी के लिए संजोये थे, मगर आज वो ही दूर है- दर्द घर कर गए। मैं परेशान हूँ उन हालातों को देख कर, जो चाह कर मेरे हक़ को मुझसे छिनवा रही है। दुनिया में बहुत सारी दुकाने खुल गयी है परेशानी को खत्म करने के लिए फिर भी न जाने क्यों उन दुकानों को देख कर भी परेशान हूँ!  जब प्यार की बात करूँ तो जात पात का सामना करना पड़ता है, क्युकी उंच-नीच भी इंसानों की देन है फिर भी इस देन से अपना सर झुकाये हताश होकर कर मुह मोड़ लेता हूँ यह सोच कर कि यह मंजिल मेरी नहीं या यह