समय की क़दर कहीं गुम है

यह बात बहुत दिनों से ज़हन में चल रही है। आख़िर क्या वजह है की सब कुछ जान कर भी मैं आज अपने आप से अनजानों सा बर्ताव कर रहा हूँ? उन बातों से भाग रहा हूँ जिनपर मैं कभी पीछे नहीं हटा, जिन्हें मैंने अपने ज़हन में हर वक़्त रखा। आख़िर कौन है जिसने मुझे मेरे ही बनाए हुए रास्ते पर ना चलने के लिए कई तरह के विश्वास जैसे रास्ते दिखा कर मुझे वहीं पर एक ही जगह पर खड़े होने पर मजबूर कर दिया? Image Courtesy: Clipartix.com मैं एक ऐसी स्थिति में जीने लगा हूँ की समझ में नहीं आता की किसे दोष दूँ और किसे ना दूँ। अपने ही काम को ना करपाने की वजह से कितने लोगों को दोषी क़रार करूँ? मैं ऐसा तो नहीं था पहले और ना कभी होना चाहता हूँ। शायद मन की एकाग्र (एक ही जगह पर) ना होने की वजह से मैं ऐसा बर्ताव तो नहीं करने लगा हूँ? कई बार लिखते लिखते अपने आप को मैं सही ढंग से देख पता हूँ समझ पता हूँ मगर फिर भी ऐसा क्या है जो मैं कुछ चाह कर भी नहीं कर पा रहा हूँ? अपने आस पास जब भी लोगों को पढ़ाई, आगे बढ़ने की बातें करते एवं सुनते देखता हूँ तो थोड़ा निराश हो जाता हूँ। मुझे भी कुछ कर दिखाने की ललक है, जिज्ञासा है मगर...