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Showing posts from 2015

पक्षपाती क़ानूनी सी नज़र

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कल दिनभर टीवी पर चर्चा होती रही की निर्भया बलात्कार कांड का आरोपी जिसे हाई कोर्ट ने रिहा करने का फ़ैसला सुनाया वो सरासर ग़लत है और उस आरोपी को रिहाई नहीं मिलनी चाहिए। पूरे दिन मुख्यधारा की मीडिया ने ऐसा समाचार दिखाना शुरू किया जैसे देश का सबसे बड़ा देशद्रोही आज ही रिहा हो रहा है। सबसे बड़ा अपराधी नहीं होना चाहिए रिहा अगर हुआ तो इससे देश में बहुत बड़ा नुक़सान हो जाएगा और वगेरा -२ । मगर असल बात तो कुछ और है जनाब। यह सब न्याय की बात नहीं यह तो सब जातिवाद की वजह से हो पाया है। इसे इस तरह से समझ कर देखते है, आपके घर में ५ लोग है। बहुत सालों से ख़ुशी ख़ुशी रह रहे है और आपके पड़ोस में भी एक परिवार से ५ ही लोग है वो भी ख़ुशी से रहते है। इत्तिफ़ाक़ से दोनो एक ही जाति के निकलते है। उनके सामने वाली गली में एक दूसरी जाति का परिवार रहता है। वो परिवार इन दोनो परिवारों से शैक्षिक तौर पर व सामाजिक तौर पर बहुत ऊपर है मगर उच्च जाति व नीच जाति के अंतर के चलते वो दोनो परिवार उस सामने वाले परिवार को हींन भावना से देखता है। इसीलिए नहीं की वो ज्ञानी है मगर हाँ वो नीच जाति का परिवार है। एक दिन

लालच के भेट चढा चेन्नई का शहर

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पुरे दुनिया में जिस तरह से मौसम बदल रहा उससे एक ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले कुछ सालों में इंसानी जीवन का खात्मा निश्चित है।  (Photo- Indianexpress.com) चेन्नई में पिछले 17 दिनों से बे मौसम बरसात की वजह से वहां का जीवन अस्तव्यस्त हो चूका है। इसका सबसे बड़ा कारण वहां के प्राकर्तिक संसाधनों पर सरकार व गैर सरकार द्वारा कब्जा कर लेना। NDTV प्राइम टाइम में खुलासा हुआ था की वहां पर जितने भी तालाब, सुखी नदी, नहर थी व सब सरकार ने ईमारत बना कर ख़तम कर दी और बाकि सोसाइटी बना कर। चेन् नई में पानी के रुकने का सबसे बड़ा कारण पानी ने निकलने की जगह न होना।  आख़िर क्या कारण रहा होगा इस आपदा से होने वाले नुक़सान का। चेन्नई में आज लोग अपनी घरों की छतों पर ही अपने जीवन को व्यतीत करने के लिए बेबस है। यह लोग अपना ज़्यादातर समय अससमान को देख कर कोसने में लगा रहे होंगे। चेन्नई की सरकार व निजी संस्थाओ द्वारा किया गया अतिक्रमण आज इन लोगों के जीवन को अधर में छोड़ गयी है।  chennai-floods-are-not-a-natural-disaster-theyve-been-created-by-greedy-town-planners-and-dumb-engineers/ दुनिया म

इजराइल: जेरूसलम की वादियों से

जब भी अपने आप को देखता हूँ, खुद को तन्हाईओं में घिरा पता हूँ। देखता हूँ उन वादियों की निगाहों से, जो चुपचाप अपनी आवाज को मद किये हुए सोये हुई है और उन्ही वादियों में मैं अपने आपको पता हूँ। खाली मकान, पर्वत पर वो एक घर, मानों जैसे यह मेरा ही तो है, मैं ही तो यहाँ रहता हूँ। पेड़ो की पत्तियों से होकर आती वो हवा, कुछ फलों को मीठा कर गुज़र रही है और कुछ मुझे। इस तन्हाई के आगोश में, मैं बहुत कुछ अपने आप सा पता हूँ, पास बैठे उस शख्स में उस दर्द को देखता हूँ, जो मेरे जैसे ही लगता है उसका चेहरा मानों बहुत कुछ अपने दिल की बातें बयान कर रहा हो। वो अंगूर के लटकते पेड़, वो अनार के पेड़ का रंग सब कुछ शांत सा एहसास बयान कर रहा है। जब भी बालकनी के झरोखे से निचे के माले पर राखी कुर्सी को देखता हूँ, तो सोचता हूँ, यह खाली पड़ी एक व्यक्ति के होने का एहसास करा रही हो। मेरी बालकनी के झरोखे से निचे और आसपास पड़े खली माकन, कई वर्षों से इंसान के अस्तित्व के न होने का एहसास करा रहे हो। यह इजराइल की वादियां मेरे देश की नहीं, मगर फिर भी न जाने क्यों यह विदेशी भी नहीं लगती। दूर सड़क पर

T R P का खेल

मीडिया, कहने के लिए तो इसके दो प्रकार है प्रिंट, दूसरा इलेक्ट्रॉनिक. और लोग भी इन्ही दो श्रेणियों में बटे हुए है. जैसे सच्चाई, सबूत, प्रमाणित या सत्यापित करने के लिए प्रिंट (अख़बार) और मनोरंजन, रोमांचक, चलचित्र देखने के लिए इलेक्ट्रॉनिक (न्यूज़ चैनल)। हमारे देश (भारत) की मीडिया, आपने ऐसी मीडिया निस्पक्ष मीडिया कहीं देखी नहीं होगी। सच कहूँ, जितना भी आज मैं जानता हूँ सब मीडिया (सोशल मीडिया ) की ही देन है। मीडिया का मूल मंत्र समाज को निस्पक्ष होकर समाज की खबर पहुँचाना, उसमे किसी भी तरह की कोई भी धार्मिक आग न डालना, मीडिया द्वारा समाज के हर वर्ग की बातों को पुरे समाज में पहुँचाना। अगर शार्ट में कहूँ तो, समाज की खबर समाज तक पहुँचाना बिना कोई नमक-मिर्च लगाये। आज समाज में एक बदलाव सा देखा जा रहा है। आप लोग कह सकते है कि समय के बदलाव कि वजह से यह बदलाव आया है। मान भी लेते है। बहुत से लोगो के लिए यह समय बहुत ही लाभकारी साबित हुआ है और बाकी लोगों के लिए किसी प्राकर्तिक आपदा से हुए नुकसान से कम नहीं। मीडिया में आई समाज से जूडी हर खबर अपनी छाप छोडकर चली जाती है। आप यह बात किसी भी मीडिया चैनल

मैं परेशान हूँ

हां मैं परेशान हूँ   मैं परेशान हूँ इस व्यस्था को देख कर, इसमें जी रहे लोगों के आंसुओं को देख कर। मैं परेशान हूँ अपने भाइयों को घर से बेघर होते देख कर। मैं परेशान हूँ उस वक़्त से जो आज भी मुझे मुझसे मिलने नहीं देता। मैं परेशान हूँ अपने सामने लोगो को भूक से तड़पता देख कर। मैं परेशान हूँ दिल्ली की गर्मी में लोगो को भीख मांगते देख कर। मैं परेशान हूँ मुझसे ज्यादा काबिल लोगों को मुझे साहब कहते देख कर।  मैं परेशान हूँ उन लोगों को देख कर जो बिना कुछ समझे फैसला करने को तैयार रहते है। मैं परेशान हूँ उन पलों को याद कर के जो मैंने अपनी ख़ुशी के लिए संजोये थे, मगर आज वो ही दूर है- दर्द घर कर गए। मैं परेशान हूँ उन हालातों को देख कर, जो चाह कर मेरे हक़ को मुझसे छिनवा रही है। दुनिया में बहुत सारी दुकाने खुल गयी है परेशानी को खत्म करने के लिए फिर भी न जाने क्यों उन दुकानों को देख कर भी परेशान हूँ!  जब प्यार की बात करूँ तो जात पात का सामना करना पड़ता है, क्युकी उंच-नीच भी इंसानों की देन है फिर भी इस देन से अपना सर झुकाये हताश होकर कर मुह मोड़ लेता हूँ यह सोच कर कि यह मंजिल मेरी नहीं या यह