T R P का खेल
मीडिया, कहने के लिए तो इसके दो प्रकार है प्रिंट, दूसरा इलेक्ट्रॉनिक. और लोग भी इन्ही दो श्रेणियों में बटे हुए है. जैसे सच्चाई, सबूत, प्रमाणित या सत्यापित करने के लिए प्रिंट (अख़बार) और मनोरंजन, रोमांचक, चलचित्र देखने के लिए इलेक्ट्रॉनिक (न्यूज़ चैनल)। हमारे देश (भारत) की मीडिया, आपने ऐसी मीडिया निस्पक्ष मीडिया कहीं देखी नहीं होगी।
सच कहूँ, जितना भी आज मैं जानता हूँ सब मीडिया (सोशल मीडिया ) की ही देन है। मीडिया का मूल मंत्र समाज को निस्पक्ष होकर समाज की खबर पहुँचाना, उसमे किसी भी तरह की कोई भी धार्मिक आग न डालना, मीडिया द्वारा समाज के हर वर्ग की बातों को पुरे समाज में पहुँचाना। अगर शार्ट में कहूँ तो, समाज की खबर समाज तक पहुँचाना बिना कोई नमक-मिर्च लगाये।
आज समाज में एक बदलाव सा देखा जा रहा है। आप लोग कह सकते है कि समय के बदलाव कि वजह से यह बदलाव आया है। मान भी लेते है। बहुत से लोगो के लिए यह समय बहुत ही लाभकारी साबित हुआ है और बाकी लोगों के लिए किसी प्राकर्तिक आपदा से हुए नुकसान से कम नहीं। मीडिया में आई समाज से जूडी हर खबर अपनी छाप छोडकर चली जाती है। आप यह बात किसी भी मीडिया चैनल पर आई खबर को देख कर कह सकते है। किसी भी मीडिया की बडी दुकान को चलाने के लिय़े आपको समाज के हर तबके के लिये कुछ एसे कार्यक्रम जारी करने पड़ते है जो TRP को जोड़े। जैसे जानकारी प्रदान करने से लेकर मनोंरजन करने तक और यही बात किसी भी मीडिया ग्रुप को समझना बहुत जरूरी है। मगर इन सब बातों से परे हट कर आज मीडिया मंडी अपनी हर खबर को अपनी खबर कि तरह पेश करने में लगी हुयी है। हालाँकि, यह काम बहुत मुश्किल है किसी भी मीडिया चैनल को चलाने के लिए। आपको समाज के हर वर्ग के टीवी का रिमोट आपके चैनल कि तरफ ही होना चाहिए और उसके लिए मीडिया को समाज की जरुरत के हिसाब से कुछ कार्यक्रम बनाने पड़ते है। यह बात उन मीडिया ग्रुप कम लागु होती है जो कई सालों से चलते है आ रहे है।
ज़ाहिर सी बात है एक मीडिया ग्रुप कई सालों तक कैसे चल सकता है? जैसा कि यहाँ पर बतलाया गया है मीडिया, जो भी कार्यक्रम या उसे न्यूज़ कह लीजिये बनता है उसे अपने दर्शको कि पसंद को ध्यान में रख कर बनाता है। TRP (Televison Rating Point) यह किसी भी एक चैनल की प्रमुखता कि जानकारी का एक मात्र श्रोत है। उदाहरण के तौर पर- सास बहु के नाटक महिलाओं में बहुत प्रचलित है जिसके चलते आज कल हर चैनल सास बहुत प्रकार के नाटक दर्शको को बना बना कर दिखा रही है। आप जब अपना TV किसी एक चैनल पर सेट करते है तो वह प्रस्तुत की जा रही जगह से उसका मापन किया जाता है कि, कौनसा कार्यक्रम लोगों को अधिक पसंद आ रहा है। उस मापन से प्राप्त होने वाली जानकारी TRP कहलाती है। कोई भी कार्यक्रम जिसकी प्रमुखता बहुत ज्यादा लोगों में देखी जाती है वह उनके TV सेट द्वारा चलाये जा रहे चैनल से पता लगाई जाती है।
आज के दौर मे मीडिया का बर्ताव कुछ जातिवादी सा देखने को मिलता है। जातिवाद से मेरा यहाँ मतलब जातिवादी कार्यकर्मो, समाज का एक पक्षिये नाटक, चर्चा में बुलाये लोगों का एक समुदाय का होना। खुल के कहा जाए तो कुछ गिने चुने समुदाय को लोगों को अपने कार्यक्रम में बुलाकर दूसरे समाज कि बात करने से भी कह सकते है। पिछले एक साल से यह देखा जा रहा है कि, समाज का एक तबका डॉ. आंबेडकर का नाम व् उन पर बने मुख्य रूप से खबर/कार्यक्रमों कि संख्या में इजाफा हो रहा है। सोचने वाली बात है, जिस इंसान को पिछले कई वर्षों से परदे के पीछे रखा गया आज उसे लेकर मुख्य रूप से कार्यक्रम क्यों बनाये जा रहे है! आखिर ऐसा क्या हुआ?
समाज में चल रही नीच राजनीती को देखते हुए मीडिया में आये गिरावट को ध्यान में रखते हुए यह बात साफ़ होने लगती है कि, डॉ. आंबेडकर बड़े मीडिया ग्रुप को क्यों याद आने लग गया। जैसा की कई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है भारत में ज्यादातर संख्या में रहने वाले लोग दलित है और संख्या में ज्यादा होने की वजह से यह समुदाय मीडिया की TRP को कब गिरा- उठा दे आप सोच भी नहीं सकते है। क्या यही कारण है डॉ. आंबेडकर पर आधारित कार्यक्रमों का ज्यादा तर न्यूज़ चैनेलो पर बढ़ना?
आप यकीन मानें मीडिया का झुकाव पैसे की तरफ ज्यादा होने के कारण मीडिया चैनलों के कार्यक्रम का ढांचा पूजींवादी कार्यक्रम बनने की राह में चल रहा है। बहुत से पत्रकार सामाजिक जरूरतों को दरकिनार करते हुए अपने द्वारा पसंद किये गए कार्यक्रमों को ही ज्यादा प्रस्तुत कर रही है।
राहुल विमल
सच कहूँ, जितना भी आज मैं जानता हूँ सब मीडिया (सोशल मीडिया ) की ही देन है। मीडिया का मूल मंत्र समाज को निस्पक्ष होकर समाज की खबर पहुँचाना, उसमे किसी भी तरह की कोई भी धार्मिक आग न डालना, मीडिया द्वारा समाज के हर वर्ग की बातों को पुरे समाज में पहुँचाना। अगर शार्ट में कहूँ तो, समाज की खबर समाज तक पहुँचाना बिना कोई नमक-मिर्च लगाये।
आज समाज में एक बदलाव सा देखा जा रहा है। आप लोग कह सकते है कि समय के बदलाव कि वजह से यह बदलाव आया है। मान भी लेते है। बहुत से लोगो के लिए यह समय बहुत ही लाभकारी साबित हुआ है और बाकी लोगों के लिए किसी प्राकर्तिक आपदा से हुए नुकसान से कम नहीं। मीडिया में आई समाज से जूडी हर खबर अपनी छाप छोडकर चली जाती है। आप यह बात किसी भी मीडिया चैनल पर आई खबर को देख कर कह सकते है। किसी भी मीडिया की बडी दुकान को चलाने के लिय़े आपको समाज के हर तबके के लिये कुछ एसे कार्यक्रम जारी करने पड़ते है जो TRP को जोड़े। जैसे जानकारी प्रदान करने से लेकर मनोंरजन करने तक और यही बात किसी भी मीडिया ग्रुप को समझना बहुत जरूरी है। मगर इन सब बातों से परे हट कर आज मीडिया मंडी अपनी हर खबर को अपनी खबर कि तरह पेश करने में लगी हुयी है। हालाँकि, यह काम बहुत मुश्किल है किसी भी मीडिया चैनल को चलाने के लिए। आपको समाज के हर वर्ग के टीवी का रिमोट आपके चैनल कि तरफ ही होना चाहिए और उसके लिए मीडिया को समाज की जरुरत के हिसाब से कुछ कार्यक्रम बनाने पड़ते है। यह बात उन मीडिया ग्रुप कम लागु होती है जो कई सालों से चलते है आ रहे है।
ज़ाहिर सी बात है एक मीडिया ग्रुप कई सालों तक कैसे चल सकता है? जैसा कि यहाँ पर बतलाया गया है मीडिया, जो भी कार्यक्रम या उसे न्यूज़ कह लीजिये बनता है उसे अपने दर्शको कि पसंद को ध्यान में रख कर बनाता है। TRP (Televison Rating Point) यह किसी भी एक चैनल की प्रमुखता कि जानकारी का एक मात्र श्रोत है। उदाहरण के तौर पर- सास बहु के नाटक महिलाओं में बहुत प्रचलित है जिसके चलते आज कल हर चैनल सास बहुत प्रकार के नाटक दर्शको को बना बना कर दिखा रही है। आप जब अपना TV किसी एक चैनल पर सेट करते है तो वह प्रस्तुत की जा रही जगह से उसका मापन किया जाता है कि, कौनसा कार्यक्रम लोगों को अधिक पसंद आ रहा है। उस मापन से प्राप्त होने वाली जानकारी TRP कहलाती है। कोई भी कार्यक्रम जिसकी प्रमुखता बहुत ज्यादा लोगों में देखी जाती है वह उनके TV सेट द्वारा चलाये जा रहे चैनल से पता लगाई जाती है।
आज के दौर मे मीडिया का बर्ताव कुछ जातिवादी सा देखने को मिलता है। जातिवाद से मेरा यहाँ मतलब जातिवादी कार्यकर्मो, समाज का एक पक्षिये नाटक, चर्चा में बुलाये लोगों का एक समुदाय का होना। खुल के कहा जाए तो कुछ गिने चुने समुदाय को लोगों को अपने कार्यक्रम में बुलाकर दूसरे समाज कि बात करने से भी कह सकते है। पिछले एक साल से यह देखा जा रहा है कि, समाज का एक तबका डॉ. आंबेडकर का नाम व् उन पर बने मुख्य रूप से खबर/कार्यक्रमों कि संख्या में इजाफा हो रहा है। सोचने वाली बात है, जिस इंसान को पिछले कई वर्षों से परदे के पीछे रखा गया आज उसे लेकर मुख्य रूप से कार्यक्रम क्यों बनाये जा रहे है! आखिर ऐसा क्या हुआ?
समाज में चल रही नीच राजनीती को देखते हुए मीडिया में आये गिरावट को ध्यान में रखते हुए यह बात साफ़ होने लगती है कि, डॉ. आंबेडकर बड़े मीडिया ग्रुप को क्यों याद आने लग गया। जैसा की कई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है भारत में ज्यादातर संख्या में रहने वाले लोग दलित है और संख्या में ज्यादा होने की वजह से यह समुदाय मीडिया की TRP को कब गिरा- उठा दे आप सोच भी नहीं सकते है। क्या यही कारण है डॉ. आंबेडकर पर आधारित कार्यक्रमों का ज्यादा तर न्यूज़ चैनेलो पर बढ़ना?
आप यकीन मानें मीडिया का झुकाव पैसे की तरफ ज्यादा होने के कारण मीडिया चैनलों के कार्यक्रम का ढांचा पूजींवादी कार्यक्रम बनने की राह में चल रहा है। बहुत से पत्रकार सामाजिक जरूरतों को दरकिनार करते हुए अपने द्वारा पसंद किये गए कार्यक्रमों को ही ज्यादा प्रस्तुत कर रही है।
राहुल विमल
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