मैं परेशान हूँ

हां मैं परेशान हूँ  
मैं परेशान हूँ इस व्यस्था को देख कर, इसमें जी रहे लोगों के आंसुओं को देख कर।
मैं परेशान हूँ अपने भाइयों को घर से बेघर होते देख कर।
मैं परेशान हूँ उस वक़्त से जो आज भी मुझे मुझसे मिलने नहीं देता।
मैं परेशान हूँ अपने सामने लोगो को भूक से तड़पता देख कर।
मैं परेशान हूँ दिल्ली की गर्मी में लोगो को भीख मांगते देख कर।
मैं परेशान हूँ मुझसे ज्यादा काबिल लोगों को मुझे साहब कहते देख कर। 
मैं परेशान हूँ उन लोगों को देख कर जो बिना कुछ समझे फैसला करने को तैयार रहते है।
मैं परेशान हूँ उन पलों को याद कर के जो मैंने अपनी ख़ुशी के लिए संजोये थे, मगर आज वो ही दूर है- दर्द घर कर गए।
मैं परेशान हूँ उन हालातों को देख कर, जो चाह कर मेरे हक़ को मुझसे छिनवा रही है।

दुनिया में बहुत सारी दुकाने खुल गयी है परेशानी को खत्म करने के लिए फिर भी न जाने क्यों उन दुकानों को देख कर भी परेशान हूँ! 

जब प्यार की बात करूँ तो जात पात का सामना करना पड़ता है, क्युकी उंच-नीच भी इंसानों की देन है फिर भी इस देन से अपना सर झुकाये हताश होकर कर मुह मोड़ लेता हूँ यह सोच कर कि यह मंजिल मेरी नहीं या यह कहिये कि, यह मंजिल मेरे हिस्से कि होकर मेरी नहीं। 

जब भी सारी जरूरतों को पूरा कर पता हूँ तब भी पता नहीं क्यों कहीं दूर किसी चीज़ को फिर से ढूंढने लगता हूँ और चेहरे पर अपने परेशानी के निशान पाता हूँ। जब भी रास्ते में चलता हूँ ज्यादातर लोगों को दुखीं पता हूँ कारण जानने की कोशिश भी करता हूँ मगर पता चलने पर फिर मैं ही खुद परेशान हो जाता हूँ।

मैं परेशान हूँ सब कुछ पाकर भी खुश नहीं हो सकता और यह जानता भी हूँ फिर भी मैं नहीं मान पाता, मैं अपने आप को नहीं जानना चाहता शायद इसीलिए मैं परेशान हूँ!

लोगों की परेशानी इस व्यवस्था से तो है ही मगर उनकी अपनी आदतों से कुछ ज्यादा ही उन्हें परेशान पाता हूँ। 
दोष किस को दूँ, कौन है जो मेरी समझ को अपनी समझ के स्तर पर देखें। आसान तो नहीं मगर क्या करूँ इंसान हूँ फिर भी निकल पड़ता हूँ किसी को ढूंढने जो मेरी इस आवाज, मेरे दर्द और अफ़साने को सुन सके इसीलिए मैं परेशान हूँ। 

आज भी जब मैं अपनी इच्छाओं पर काबू नहीं कर पता और फिर बाद में उनके पाने की लालसा में बुरी तरफ से लग जाता हूँ तब मैं अपने आप परेशान पाता हूँ। अपने आप से किये गए वादों को जब भी मैं अधूरा पाता हूँ तब-तब मैं परेशान अपने आप को परेशान पाता हूँ।

खासियत यह मेरे इस समाज कि, अगर मैं अपना दर्द-ए-अफ़साना बयां करू तो यही लोग मुझे कहेंगे की अपनी परेशानी खुद देखो भाई हमें छोड़दो।


राहुल विमल

Comments

  1. Rahul bhaiya problams tenporary hai lekin preshani lifetime rehti hai....
    Hum sub ek dhara me behte hai qki samaj ke sath rehna shayad aap majboori keh sakte ho....
    Main pareshan hu.....
    Ya yu kahiye ki dukh apne nhi dekhte hai magar aas paas ke dukh dekhkar hum pareshan hai...
    Samaj ki maansikta ko badalne ke lie lobh dena padta hai.

    ReplyDelete

Post a Comment