मूर्ति लगवाने की असली परिभाषा क्या है?

685 cr में राष्ट्रीय दलित प्रेरणा स्थल जिसमे- दर्जनों मुर्तिया हाथी एवं 9 महापुरुष- ज्योतिवा राव फुले, बाबा साहेब, शाहूजी महाराज, कांशीराम, संत रविदास, कबीरदास, गुरु घासीदास, और बहुत से समाज सुधारकों की है जिनकी ऊंचाई 18 फीट के करीब है, और सबसे महत्वपूर्ण भारत का राष्ट्रिय चिन्ह (अशोका) जिसकी ऊंचाई १०० फीट है, सारी मूर्ति  एवं पुरे पार्क निर्माण का रिकॉर्ड खर्चा 685 cr. बैठा| इस स्थल के निर्माण के दौरान बहुत से राजनीतिक दलों ने शोर मचाया कि  यह जनता का पैसा है इसे मूर्ति बनाने में बर्बाद किया जा रहा है| चलते काम को कई बार रोकने की कोशिश भी की गयी बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इसका काम दुबारा शुरू हुआ और पूरा हुआ, आज इस स्थल को ज्यादातर लोग दलित प्रेरणा स्थल के नाम से जानते हैं और कुछ लोग इसे राष्ट्रिय ग्रीन पार्क के नाम से|

दूसरी तरफ
अभी हाल ही में हमारे प्रधान मंत्री जी की इच्छा अनुसार एक प्रोजेक्ट पास हुआ बल्कि काफी प्रोजेक्ट पास हुए जो जनहित में कम मगर निजी हित में ज्याता दिखाई दिए जैसे - यमुना सफाई अभियान, भारतीय रेल में RO का पानी (सप्लाई कौन करेगा भारत सरकार? या कोई कॉन्ट्रैक्ट कंपनी), औरत शाश्क्तिकरण योजना - फीमेल पुलिस भर्ती (सिर्फ बोले गए), वाराणसी धाम विकास योजना, सरदार बलभ भाई पटेल मूर्ति निर्माण एवं बहुत से प्रोजेक्ट की घोसना हुई |

अब बात यह उठती है
2500 cr.(अनुमान) सिर्फ एक मूर्ति सरदार बलभ भाई पटेल बनवाने के लिए |
क्या अब कोई यह नहीं कहेगा की यह जनता का पैसा है जो मूर्ति बनवाने में बर्बाद किया जा रहा हैं?
या
मूर्ति बनवाने का अधिकार भी वर्ण व्यवस्था के हिसाब से ही होता है| (के फलाना मूर्ति बनाये तो पैसा बर्बाद है और दूसरा बनवाए तो पैसा का सही उपयोग)
शायद इसीलिए मायावती के समय ज्यादा शोर हुआ था !!!  


राहुल विमल

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