Bekadar duniya बेकद्र दुनिया

बेकद्र एक ऐसा शब्द है जो हमें कुछ सोचने पर मजबूर कर देता है | जब भी हम इस शब्द को किसी से सुनते है तो, आखिर क्यों?, क्या?, कैसे? यह शब्द इस तरह के प्रश्नों के रूप में हमारे दिमाग में आते है| जब कभी भी आप इस शब्द का इस्तेमाल करते है तो एक ही बात आपके ज़ेहन या आपके मन में आ ही जाती है | "नफरत" वो क्यों? क्युकी या तो वह इंसान आपकी इच्छाओ पर खरा नहीं उतरा या इंसानियत की मिसाल को दाघिन्न कर रहा है |

आप भी यह सोच रहे होंगे कि आखिर क्यों मैंने इस शब्द का इस्तेमाल किया? आखिर क्या जरूरत आन पड़ी मुझपर जो "बेकद्र" शब्द आज मेरा ब्लॉग पोस्ट बन गया | "बेकद्र " यह शब्द किसी इंसान के लिया भी इस्तेमाल किया जा सकता है और पुरे समाज के लिए भी | समझ समझ का फैर है  अगर हम यु कहे की आपने किसी वस्तु या किसी विशेष व्यक्ति की कदर न करने को बेकदरी केहते है तो आप थोडा हल्का समझेंगे और दुसरे शबदो में कहे तो " इच्छाओ के साथ साथ खिलवाड़ करना, किसी की मज्बूरी को न समझना, अपने आप में गुरुर करना बेकद्री को दर्शाता है|

मैंने कई जगहों पर लोगो को हस्ते देखा है रोते हुए भी देखा है मगर यह तो ज़िन्दगी का एक हिस्सा है जो हमेशा आपके साथ रहेगा मगर बेकद्री तो खतरनाक पल है इंसान की ज़िन्दगी का वो पहलु है जो स्वार्थ पैदा करने से होता है| बेशक आप इस बात से किनारा कर सकते है मगर यह आपके आसपास ही मजूद है|

कई बार मैंने अपने आसपास लोगो को देखा है जो समय के अनुकूल भी चलना पसंद करते है और विपरीत भी| जो लोग समय के अनुकूल चलना पसंद करते है वो थोड़े मॉडर्न माने जाते है और उसी हिसाब से अपने जीवन को व्यतीत करते है | अगर कोई दूसरा व्यक्ति समय के साथ नहीं चल पा रहा और वो गलती से उस व्यक्ति से मिलता है जो समय के साथ चलना पसंद करता है तो समझिये उनके बिच कितना बड़ा फासला होगा समझ को समझने का | और वो फासला एक खतरनाक मजाक के रूप में भी उजागर हो सकता है | आप नहीं जानते है की अगला व्यक्ति कब आपकी बातो से दुखी हो जाये इसिलए कहा जाता है की कम बोलो मगर थोडा समझ कर सोच कर बोलो|
मेरा आप सभी से एक सवाल है हम अपने समझ में बेकद्री करे ही क्यों....?


Rahul Vimal
St. of Master in Mass Communication
Gautam Buddha University
India

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