Is Woman a object of consumption. क्या औरत एक उपभोग की वस्तु है ?

मेले तो अपने बहुत से देखें होंगे | जहाँ पर कई तरह के मौज मस्ती के कार्यक्रम और व्यवस्था होती है आपका मनोरंजन करने के लिए | कुछ इसी तरह का एक मेला आज कल ग्रेटर नॉएडा के पास एक छोटे से गाँव कासना में लगा हुआ था | मेले में वो सब कुछ था जो आमतौर पर होना चाहिए जैसे की बड़े पहिये वाला झुला, कोलंबस जिसे हम नाव वाला झुला भी कहते है, निशाने बाज़ी, फोटोग्राफी, बबली डांस, और जादू इतियादी जैसे कार्यक्रम पेस किये जाते है और भी बहुत से के करतब और गाने जो मेले की आवाज को दूर दूर तक लोगो के कानो में पहुचाते है | यहाँ पर आने वाले लोगो की कुछ अलग ही श्रेणी है जैसे कुछ लोग अपने परिवारों के साथ तो कुछ अपने दोस्तों के साथ तो कुछ अकेले ही मौज करने आ जाते है |
मेला, देखा जाये तो यह एक मौज मस्ती की जगह है | आप यहाँ उन सारी खुशियों से रूबरू होते है जो आप ज्यादातर पुरानी टीवी सिरिअल और फिल्मो में देखते है | मेले में आपको लुभाने के लिए हर तरह का इंतजामात किया जाता है | बरहाल हम यह भी भूल जाते है की जो हमारा मनोरंजन कर रहा है वो भी तो एक इंसान ही है |

इस ब्लॉग पोस्ट में मेरा एक मात्र उदेश्य उन बातो को आपके सामने लाना है जो ज्यादातर लोगो द्वारा नजरंदाज कर दिया जाते है | बात है मेले के एक मनोरंजक हिस्से की जिसे आप बबली डांस भी कह सकते है जैसा की फिल्मो और पुराने सीरियल में देखा करते थे | ठीक उसी तरह का कुछ यहाँ पर भी था | कुछ बाते आपकी जानकारी के लिए उस बबली डांस कार्यक्रम के बारे में, वैसे तो यहाँ पर मेला शाम ५ बजे से शुरू होता है और रात ११ बजे तक चलता है ३०-४० सीट बैठने के लिए मतलब कम से कम ३० लोग तो एक बार में आते है उस कार्यक्रम को देखने के लिए पूरा कार्यक्रम ५-७ मिनट का होता है  जिसमे आपको ५ से ७ मिनट का अन्तराल मिल सकता है आराम करने के लिए |

आप क्या समझ सकते है इन ऊपर दिए कुछ समय और आकंड़ों से | और तो और उन लडकियों को वहा बैठे पुरे ३० से ३५ लोगो का मनोरंजन करना उनकी जिमेदारी है अगर वो खुश नहीं हुए तो अगले शो में कौन आयेगा उन्हें देखने | वहा पर हर कोई उन्हें एक उपभोग की वस्तु की तरह उन्हें देख रहा था | मगर यह बात और है कि वो लोग आये ही है इसी काम के लिए| वहा पर कई लोग बैठे हुए थे और कई तरह की बाते कर रहे थे. कुछ लोगो के विचार उन लडकियों के लिए तो काफी अलग तो कुछ लोगो के वाहियात | पता नहीं क्यों मगर देखा गया है की लोग अपनी संतुस्ती को पाने के लिए किसी भी हद तक गिर जाते है | वो लोग यह भी नहीं सोचते कि अगला व्यक्ति क्या सोचेगा मेरे बारे में,... उन्हें कोई फरक नहीं पड़ता| 

अगर हम ऊपर के तथ्यो के हिसाब से बात करे तो एक दुकानदार अपने भाव कुछ इस तरह से कह सकता है हम लोग बेहद भावनातक रूप से विचार करने में सक्षम है मगर देखा जाये तो भावना से काम करना कई बार गलत साबित हुआ है| आप अपने अगल बगल में देख सकते है की जो लोग भावना में बह कर काम करते है वेह अपने दिमाग का इस्तेमाल मुश्किल से कर पाते है| 

आखिर में बात यही पर आ कर रुक जाती है की क्या यह समाज आगे भी महिलाओ को उपभोग का जरिया मान कर आगे भी उन्हें यही काम करने को आगे लायेगा या यह तरीका ऐसा ही चलता रहेगा या फिर कुछ और भी बदलाव आ सकते है आने वाले समय में |



Rahul Vimal
St. of Master in Mass Communication
Gautam Buddha University
India




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