आपका मत प्रचार तय करता है, आप नहीं।

पिछले साल अगस्त के दौरान यू॰पी॰ में। बात कुछ हज़म होने लायक नहीं है। बसपा का चुनाव प्रचार ज़ोरों शोरों से है और विरोधी पार्टियाँ शांति स्थापित किए हुए है? पिछले महीने बसपा की रैलियों में जिस तरह से लोगों का सैलाब देखा गया वह काफ़ी चौकने वाला रहा। बहुत सी विरोधी पार्टियों ने उस पर बात करना इसीलिए मूनासिब नहीं समझा क्योंकि उनके पास इस पर प्रहार करने के लिए कुछ नहीं था। मैं भी इस सोच के साथ बहुत दिनों से बैठा हुआ था कि, पहली बार बसपा के अलवा ओर किसी भी पार्टी के एक दिवसीय रैली में लोग क्यों नहीं पहुँच रहे है? क्या लोगों का भरोसा बसपा छोड़ बाक़ी पार्टियों से उठ गया है? या यह कहें कि लोग अब अपना मत समझने लगे है और उसी दिशा में अपने निर्णय लेने लगें है? यह कहना थोड़ा मुश्किल है, क्योंकि आपका मत आप ख़ुद नहीं आपके TV, रेडीओ पर दिखाई व सुनाई जाने वाला प्रचार तय करता है। इन सब बातों का आज यहाँ पर लिखने का तात्पर्य आज की तस्वीर जो फ़ेस्बुक पर ख़ूब घूम रही है (या यू कहूँ की घुमाई जा रही है) लोगों का कहना है कि बसपा कि लहर की चलते भक्त (किसी भी दल, समूह के...