शिक्षक दिवस का मेहत्व

उदहारण के तौर पर अभी हाल ही में भारत में शिक्षक दिवस मनाया गया था, जिसे हमारे प्रधान मंत्री जी ने राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारित करवाया और मनवाया भी | मुझे कुछ बात तथ्यों के आधार पर नहीं लगी, जैसे हम कभी कोई दिन विशेष दिन की तरह मनाते है तो हम उस दिन में कुछ विशेष ढूंढ़ते है और कुछ विशेष नहीं मिले तो ज़ाहिर है नहीं मानते, खास तौर पर शिक्षक दिवस जिस इंसान को याद करते मनाया गया वह मेरे हिसाब से कुछ ऐसा नहीं था जो मुझे उस दिन को मानाने के लिए उत्साहित करे |

मेरे हिसाब से कोई भी दिवस मानना तब जरुरी होता है जब वह सही में विशेष दिवस के लिए सर्वापरि हो| शिक्षक के तौर पर हमारे देश में सबसे पहले कोई आया है तो वो सिर्फ ज्योतिबा और सावित्री बाई फुले है और हमें शिक्षक परम्परा के हिसाब से हमे यह दिन मतलब शिक्षक दिवस 3 जनवरी को मानना चाहिए |  मगर हमारे प्रधान मंत्री जी ने यह दिन पूरी तरह से थोपने की कोशिश पूरा दिन जारी राखी, स्कूलों ने न चाह कर भी यह दिन प्रधान मंत्री जी के तरीके से मनाया |

सर्वपल्ली राधाकृष्णन, बतौर हमारे दुतीय राष्ट्रपति रह कर ऐसा कुछ कार्य नहीं कर सके जिससे हम कुछ प्रेरणा मिले, मैं यह नहीं कह रहा की यह इंसान कम काबिल है मगर कुछ बातें जो सोचने पर मजबूर कर देती है की यह व्यक्ति सच में इस दिन का असली हक़दार हैं या सावित्री बाई फुले,
जैसे
इनके छह बच्चे थे, जिनमे से पांच लडकिया और एक लड़का, क्या यह पांच लडकिया एक लड़के से पहले हुई थी या सही में बच्चे बहुत पसंद थे !
हिन्दू धरम के प्रति सच्ची आस्था रखना जबकि उस समय भारत में जातीवाद उच्च स्तर पर था,
तो हम इस बात से क्या अंदाजा लगा सकते है ?


राहुल विमल

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